झूले भी थे आंगन भी था तूफानों की बात नहीं थी
कल ऐसी बरसात नहीं थी।
भीगे आँचल में सिमटी सी बदली घर-घर घूम रही थी
आसमान के झुके बदन को छू कर बिजली झूम रही थी
घुटी हवाएं उमस भरे दिन और अँधेरी रात नहीं थी
कल ऐसी बरसात नहीं थी।
बौछारों के बीच नहा कर निखर उठा था जैसे जीवन
कागज की नावों पर चढ़ कर चहक रहा था भोला बचपन
खिलते फूलों की झोली में काँटों की सौगात नहीं थी
कल ऐसी बरसात नहीं थी।
घिर आयी थीं नयी घटायें सांसों में उतरी थी सिहरन
गीली मिटटी महक रही थी खुशबू में खोया था तनमन
गोरी बाँहों में गजरे थे कीचड़ सनी परात नहीं थी
कल ऐसी बरसात नहीं थी।
इकलौते चिराग की टिमटिम मौसम का रुख भांप रही थी
सर्द हवाओं के झोके से कभी-कभी लौ कांप रही थी
बुझती हुई शमा के घर परवानों की बारात नहीं थी
कल ऐसी बरसात नहीं थी।
मंगलवार, 20 जुलाई 2010
शनिवार, 10 जुलाई 2010
सामना हो सलाम हो जाये।
दोपहर हो कि शाम हो जाये
सामना हो सलाम हो जाये।
और कर इंतजार साहब का
क्या पता आज काम हो जाये।
वक्त की बात है न जाने कब
कौन किसका गुलाम हो जाये।
सब्र की यूँ न आजमाइश कर
जिंदगी बेलगाम हो जाये।
नाम चलता रहे ज़माने में
उम्र चाहे तमाम हो जाये।
सामना हो सलाम हो जाये।
और कर इंतजार साहब का
क्या पता आज काम हो जाये।
वक्त की बात है न जाने कब
कौन किसका गुलाम हो जाये।
सब्र की यूँ न आजमाइश कर
जिंदगी बेलगाम हो जाये।
नाम चलता रहे ज़माने में
उम्र चाहे तमाम हो जाये।
बुधवार, 7 जुलाई 2010
यूँ न अब दिल उछाल.....
यूँ न अब दिल उछाल कर चलना
जब चलो देख-भाल कर चलना।
आजकल मुफ्त कुछ नहीं मिलता
माल मुट्ठी में डाल कर चलना।
दोगले मोड़ पर नहीं आना
राह सीधी निकाल कर चलना।
जिंदगी और पास आएगी
मौत का साथ टाल कर चलना।
लोग उलटे जवाब देते हैं
कर सको तो सवाल कर चलना.
जब चलो देख-भाल कर चलना।
आजकल मुफ्त कुछ नहीं मिलता
माल मुट्ठी में डाल कर चलना।
दोगले मोड़ पर नहीं आना
राह सीधी निकाल कर चलना।
जिंदगी और पास आएगी
मौत का साथ टाल कर चलना।
लोग उलटे जवाब देते हैं
कर सको तो सवाल कर चलना.
सोमवार, 5 जुलाई 2010
मेरी रातें उनके सपने
रोज खुले में टकराते हैं मेरी रातें उनके सपने
अक्सर घायल हो जाते हैं मेरी रातें उनके सपने।
बेखटके चलती रहती हैं बेहूदा बेढंगी बातें
चुप रहने से कतराते हैं मेरी रातें उनके सपने।
शिकवे हैं उलझन हैं ग़म हैं लेकिन कैसी मज़बूरी है
रिश्ते तोड़ नहीं पाते हैं मेरी रातें उनके सपने।
सूनी राह भटक जाता हूँ इनका पीछा करते-करते
मुझको पागल बतलाते हैं मेरी रातें उनके सपने।
अपनी ही सूरत से खुद को मैं पहचान नहीं पाता हूँ
आईना जब ले आते हैं मेरी रातें उनके सपने.
अक्सर घायल हो जाते हैं मेरी रातें उनके सपने।
बेखटके चलती रहती हैं बेहूदा बेढंगी बातें
चुप रहने से कतराते हैं मेरी रातें उनके सपने।
शिकवे हैं उलझन हैं ग़म हैं लेकिन कैसी मज़बूरी है
रिश्ते तोड़ नहीं पाते हैं मेरी रातें उनके सपने।
सूनी राह भटक जाता हूँ इनका पीछा करते-करते
मुझको पागल बतलाते हैं मेरी रातें उनके सपने।
अपनी ही सूरत से खुद को मैं पहचान नहीं पाता हूँ
आईना जब ले आते हैं मेरी रातें उनके सपने.
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
आंख का पानी
आदमी को तोलता है आंख का पानी
गांठ मन की खोलता है आंख का पानी।
ये किसी भी हाल में नीचे नहीं आता
आसमान टटोलता है आंख का पानी।
सीप में बिखरे पड़े हों जिस तरह मोती
पुतलियों में डोलता है आंख का पानी।
झील को सागर बना दे इसलिए उसमें
कुछ नमक सा घोलता है आंख का पानी।
मुद्दतों का मौन हिम्मत हार जाता है
बिन कहे जब बोलता है आंख का पानी
गांठ मन की खोलता है आंख का पानी।
ये किसी भी हाल में नीचे नहीं आता
आसमान टटोलता है आंख का पानी।
सीप में बिखरे पड़े हों जिस तरह मोती
पुतलियों में डोलता है आंख का पानी।
झील को सागर बना दे इसलिए उसमें
कुछ नमक सा घोलता है आंख का पानी।
मुद्दतों का मौन हिम्मत हार जाता है
बिन कहे जब बोलता है आंख का पानी
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