शनिवार, 28 अगस्त 2010

चाँद की रात मिलेंगे हम-तुम

हों न हालात मिलेंगे हम-तुम
बात-बेबात मिलेंगे हम-तुम

एक सा खून रगों में अपनी
एक है जात मिलेंगे हम-तुम

बेरुखी छोड़ चलें शहरों  में
गाँव-देहात मिलेंगे हम-तुम

फिर किसी मोड़ किसी मंजिल पर
है मुलाकात मिलेंगे हम-तुम

खो न जाना डगर अँधेरी है
चाँद की रात मिलेंगे हम-तुम

शनिवार, 14 अगस्त 2010

तोड़ दे माखन मटकी

पीजा जो कडवा मिले जा मीठे को भूल
आज कोक के सामने लस्सी चाटे धूल.
लस्सी चाटे धूल सैर कर काफी हट की
बर्गर से दिल लगा तोड़ दे माखन मटकी.
शब्द आधुनिक सीख देख फिर नया नतीजा
है खाने की चीज़ मिलेगी कह कर पीजा.

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

खुले घूमते बाज

है कैसा अंधेर ये, कैसा जंगल राज.
पंछी थर-थर कांपते, खुले घूमते बाज.
खुले घूमते बाज जहाँ तक नजर पड़ी है.
सोने की चिड़िया पर इनकी आंख गडी है.
झपट चोंच में भर लेने को कमर कसी है.
चिड़िया है अनजान बात बस इतनी सी है.

रविवार, 1 अगस्त 2010

अंधी पीसे कुत्ते खायं

बेखटके चौके तक जायं
अंधी पीसे कुत्ते खायं.

इनसे भूखी आदम जात
सोलह आने सच्ची बात
कितने पढ़े ज्ञान विज्ञान
मैल  न धो पाया इन्सान
ये साबुन से रोज नहायं
अंधी पीसे कुत्ते खायं.

दिल्ली रह लें या भोपाल
वही समझ वैसा ही हाल
फिरते गज भर जीभ निकाल
जैसे ही पा जाएँ माल
लड़ें-भिड़ें भोंकें गुर्रायं
अंधी पीसे कुत्ते खायं.

इनकी आदत पर दे ध्यान
जीवन के सच को पहचान
मेहनत के दिन बीते यार
तू भी छीन झपट्टा मार
चोर उचक्के मौज मनायं
अंधी पीसे कुत्ते खायं.

झूठ कहें कहलायं  महान
सच्चे की सांसत में जान
कहीं  सिसकती सूनी शाम
हंस कर कहीं छलकते जाम
 लुच्चे मोहन भोग चबायं
अंधी पीसे कुत्ते खायं.


रखवाली था जिनका काम
लालच के सब हुए गुलाम
कैसा उल्टा चला जहान
भीतर राज कर रहे श्वान
बाहर शेर खड़े ललचायं
अंधी पीसे कुत्ते खायं.