सोमवार, 5 जुलाई 2010

मेरी रातें उनके सपने

रोज खुले में टकराते हैं मेरी रातें उनके सपने
अक्सर घायल हो जाते हैं मेरी रातें उनके सपने।

बेखटके चलती रहती हैं बेहूदा बेढंगी बातें
चुप रहने से कतराते हैं मेरी रातें उनके सपने।

शिकवे हैं उलझन हैं ग़म हैं लेकिन कैसी मज़बूरी है
रिश्ते तोड़ नहीं पाते हैं मेरी रातें उनके सपने।

सूनी राह भटक जाता हूँ इनका पीछा करते-करते
मुझको पागल बतलाते हैं मेरी रातें उनके सपने।

अपनी ही सूरत से खुद को मैं पहचान नहीं पाता हूँ
आईना जब ले आते हैं मेरी रातें उनके सपने.

2 टिप्‍पणियां:

  1. मैं क्या कहूं. तुम जितनी प्यारी गज़लें कहते हो, उनका कोई जवाब नहीं है बनाये रखो यह लय-ताल.

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